भारत में रूफटॉप सोलर को लेकर राज्य सरकारों के बीच तेजी से प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल फ्यूल से बिजली पैदा की जाए जिसमें से 30 GW केवल रूफटॉप सोलर से 2027 तक हासिल करना है। इसके लिए जरूरी है कि राज्य सरकारें अपनी नीतियों को सरल, आकर्षक और तकनीकी रूप से उन्नत बनाएं। हाल के वर्षों में कई राज्यों ने अपनी रूफटॉप सोलर पॉलिसी को अपडेट किया है, लेकिन सवाल यह है कि कौन सबसे आगे है और किसने वाकई उपभोक्ताओं को स्मार्ट विकल्प दिए हैं?

न्यूनतम और अधिकतम क्षमता की पॉलिसी: किसे मिली कितनी आज़ादी?
देश के 24 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने रूफटॉप सोलर के लिए न्यूनतम क्षमता सीमा 1 kW तय की है, जबकि अधिकतम सीमा 500 से 2000 kW के बीच है। ये सीमाएं कई बार उपभोक्ताओं की जरूरतों को सीमित कर देती हैं। उदाहरण के लिए, कम बिजली खपत करने वाले गरीब या ग्रामीण उपभोक्ताओं को 1 kW से कम सिस्टम नहीं लगाने दिया जाता जिससे वे इस योजना का लाभ नहीं उठा पाते। वहीं, बड़ी इंडस्ट्रीज को भी अधिकतम सीमा की वजह से कभी-कभी जरूरत से कम क्षमता का सोलर सिस्टम लगाना पड़ता है। अगर राज्य इन सीमाओं को लचीला बनाएं तो सोलर को अपनाने वाले उपभोक्ताओं की संख्या काफी बढ़ सकती है।
किस राज्य ने अपनाई सबसे एडवांस मीटरिंग व्यवस्था?
सोलर पॉलिसी में नेट मीटरिंग की भूमिका बेहद अहम होती है। अधिकतर राज्यों ने या तो नेट मीटरिंग या ग्रॉस मीटरिंग मॉडल को अपनाया है। नेट मीटरिंग सबसे पॉपुलर मॉडल है जिसमें उपभोक्ता अपनी खपत से ज्यादा बिजली ग्रिड को भेजकर बिल में राहत पाते हैं। कुछ राज्य जैसे दिल्ली, झारखंड, उत्तराखंड और गोवा ने इससे भी एक कदम आगे जाकर ग्रुप नेट मीटरिंग और वर्चुअल नेट मीटरिंग जैसे स्मार्ट विकल्प उपलब्ध कराए हैं। ये नए मॉडल उपभोक्ताओं को एक ही सिस्टम से कई लोकेशनों पर लाभ उठाने की सुविधा देते हैं। हालांकि, अब भी कई राज्य ग्रॉस मीटरिंग पर अटके हुए हैं जो सिर्फ डिस्कॉम के हित में होती है। नेट बिलिंग जैसे बैलेंस्ड मॉडल को केवल 12 राज्य ही अपना पाए हैं।
किस राज्य ने दिए हैं सबसे आकर्षक इंसेंटिव्स?
कुछ राज्यों ने रूफटॉप सोलर को अपनाने के लिए बहुत प्रभावशाली इंसेंटिव्स दिए हैं। दिल्ली और केरल जैसे राज्य उपभोक्ताओं को जनरेशन-बेस्ड इंसेंटिव देते हैं, यानी जितनी बिजली आप सोलर से जनरेट करेंगे उतना पैसा मिलेगा। वहीं असम, उत्तर प्रदेश, झारखंड, गोवा और गुजरात जैसे राज्यों ने रेसिडेंशियल उपभोक्ताओं के लिए कैपिटल सब्सिडी उपलब्ध करवाई है। दिलचस्प बात ये है कि गोवा ने यह सुविधा इंडस्ट्रियल उपभोक्ताओं को भी दी है और उत्तराखंड ने बैटरी स्टोरेज को भी सब्सिडी में शामिल किया है। कई राज्यों ने बिजली शुल्क और टैक्स में भी छूट दी है। झारखंड और उत्तराखंड जैसे राज्य गांवों को सोलराइज करने के लिए विशेष योजनाएं चला रहे हैं जिससे सोलर की पहुंच और प्रभावशीलता बढ़ रही है।
किस राज्य की पॉलिसी है सबसे स्मार्ट और भविष्य के लिए तैयार?
2019 से 2024 के बीच 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपनी नई सोलर पॉलिसी लागू की है। इनमें से कई राज्यों ने सेक्टर-वाइज टारगेट तय किए हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और झारखंड ने रेसिडेंशियल, कमर्शियल और सरकारी उपभोक्ताओं के लिए अलग-अलग लक्ष्य तय कर स्पष्ट रोडमैप तैयार किया है। दिल्ली, कर्नाटक और झारखंड ने पीयर-टू-पीयर एनर्जी ट्रेडिंग और वर्चुअल नेट मीटरिंग जैसे इनोवेटिव मॉडल को सपोर्ट किया है। झारखंड, उत्तराखंड और केरल ने सस्ती फाइनेंसिंग के लिए राज्य नोडल एजेंसियों को जिम्मेदार बनाया है। दिल्ली, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने सोलर एप्लिकेशन और मीटरिंग डेटा के लिए डिजिटल डैशबोर्ड बनाए हैं ताकि पारदर्शिता बनी रहे। इन सब उपायों को देखते हुए दिल्ली, उत्तराखंड, झारखंड और गोवा जैसी राज्य सरकारें रूफटॉप सोलर की स्मार्ट पॉलिसी की रेस में सबसे आगे नजर आती हैं।
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