प्रधानमंत्री सूर्यघर: मुफ्त बिजली योजना (PM Surya Ghar: Muft Bijli Yojana) को फरवरी 2024 में बड़े धूमधाम से लॉन्च किया गया था। सरकार का मकसद था कि हर घर की छत पर सोलर पैनल लगाकर न सिर्फ घरेलू बिजली की जरूरतें पूरी की जाएं बल्कि अतिरिक्त बिजली बेचकर परिवारों को आर्थिक लाभ भी मिले। लेकिन कर्नाटक में इसका असर उम्मीद के मुताबिक नहीं दिखा। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2.23 लाख लोगों ने आवेदन किया, लेकिन जुलाई 2025 तक केवल 10,672 परिवार ही इस योजना का लाभ उठा पाए। यह संख्या कुल आवेदनों का मात्र 5% भी नहीं है।

योजना की दिक्कतें और लोगों की शिकायतें
विशेषज्ञों का कहना है कि इस योजना की सबसे बड़ी चुनौती जटिल प्रक्रिया और उच्च लागत है। एक 3 किलोवाट का सोलर सिस्टम लगाने में करीब ₹2.25 लाख का खर्च आता है, जबकि सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी अधिकतम ₹78,000 है। यानी खर्च का बड़ा हिस्सा उपभोक्ता को खुद उठाना पड़ता है। इसके अलावा बिजली वितरण कंपनियां (DISCOMs) अतिरिक्त बिजली मात्र ₹2.46 प्रति यूनिट की दर से खरीद रही हैं, जिससे ग्राहकों को अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पा रहा।
कई उपभोक्ताओं ने शिकायत की कि ऑनलाइन आवेदन में विक्रेता (vendors) चुनने की प्रक्रिया बेहद पेचीदा है। वेबसाइट पर भले ही कई विकल्प दिखते हों, लेकिन आखिर में केवल कुछ चुनिंदा विक्रेता ही उपलब्ध होते हैं, जिनकी कीमतें काफी अधिक होती हैं। हबली के रहने वाले गणपति भट ने बताया कि उन्होंने आवेदन की प्रक्रिया बीच में ही छोड़ दी क्योंकि लागत और प्रक्रिया दोनों मुश्किल थीं।
इसके अलावा, कर्नाटक सरकार की “गृहज्योति योजना” भी पीएम सूर्यघर के आड़े आ रही है। इस योजना के तहत 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिलती है। ऐसे में कई लोग सोलर पैनल लगाने से पीछे हट जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मुफ्त बिजली का लाभ खत्म हो जाएगा।
केंद्र बनाम राज्य: blame game जारी
केंद्रीय नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा है कि कर्नाटक इस योजना में रुचि नहीं दिखा रहा है। उनका कहना है कि यह डिमांड-ड्रिवन स्कीम है और केंद्र सरकार ने इसके लिए ₹75,021 करोड़ का बजट तय किया है। कई राज्य इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं और अपनी बिजली उत्पादन क्षमता भी बढ़ा रहे हैं। लेकिन कर्नाटक की स्थिति अलग है। मंत्री ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार हर यूनिट ₹6 में फॉसिल फ्यूल से बिजली खरीदने को तैयार है, लेकिन सस्ती और पर्यावरण हितैषी ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा नहीं देना चाहती।
हालांकि, राज्य के ऊर्जा विभाग का कहना है कि समस्या पैनलों की कमी की नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं की अनिच्छा की है। बहुत से लोग पहले आवेदन करते हैं और फिर लागत व सब्सिडी की वास्तविकता जानने के बाद पीछे हट जाते हैं।
नतीजतन, पीएम सूर्यघर योजना कर्नाटक में अब तक अपेक्षित सफलता नहीं हासिल कर पाई है। यदि राज्य सरकार और केंद्र मिलकर लाभार्थियों की समस्याओं का समाधान नहीं करते, तो यह महत्वाकांक्षी योजना यहां और भी पिछड़ सकती है।