भारत में सोलर पैनलों का नज़ारा अब आम हो चुका है और इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान PM Surya Ghar योजना का है। फरवरी 2024 में शुरू हुई इस योजना ने मात्र डेढ़ साल में 15.45 लाख घरों तक पहुंच बना ली है। MNRE के आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल सोलर क्षमता में से 16% अब रूफटॉप सोलर का है और इसमें से आधे से ज्यादा की वृद्धि पिछले 18 महीनों में हुई है। हालांकि यह प्रगति सराहनीय है, लेकिन लक्ष्य अभी भी बड़ा है – 1 करोड़ घरों तक पहुंचना। इस सफ़र में इंस्टॉलेशन क्वालिटी, गलतफहमियां और जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियाँ रास्ता रोक सकती हैं।

जागरूकता और क्वालिटी का अंतर
रूफटॉप सोलर के मामले में अधिकांश उपभोक्ता इंस्टॉलर की सलाह पर निर्भर रहते हैं और खुद तकनीकी पहलुओं पर ध्यान नहीं देते। इससे घटिया मटेरियल, कमजोर स्ट्रक्चर और गलत वायरिंग जैसी समस्याएं सामने आती हैं। कई राज्यों में मुफ्त बिजली योजनाओं के चलते लोगों को गलतफहमी हो गई कि PM Surya Ghar योजना भी पूरी तरह मुफ्त है। जब उन्हें इंस्टॉलेशन की वास्तविक लागत का पता चलता है, तो कई लोग पीछे हट जाते हैं। इसके अलावा, इंस्टॉलेशन के पांच साल बाद मेंटेनेंस की जिम्मेदारी उपभोक्ता पर आ जाती है, जो अक्सर सही तरीके से सफाई और प्री-मॉनसून चेक नहीं करते, जिससे सिस्टम की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
रोजगार की संभावना और स्किल की कमी
एक अध्ययन के अनुसार, सिर्फ रूफटॉप सोलर से भारत में लगभग 10 लाख रोजगार पैदा हो सकते हैं, क्योंकि यह सेक्टर इंस्टॉलेशन, मेंटेनेंस और रिपेयर के लिए अधिक मानव संसाधन मांगता है। फिलहाल गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान इस क्षेत्र में सबसे आगे हैं, लेकिन कुशल श्रमिकों की कमी एक बड़ी बाधा है। कई इंस्टॉलेशन ऐसे पाए गए हैं जो तेज हवाओं या बारिश में क्षतिग्रस्त हो गए, क्योंकि स्ट्रक्चर सही मानकों के अनुसार नहीं बनाए गए थे। जब तक इंस्टॉलर्स को उचित प्रशिक्षण नहीं मिलेगा और सख्त तकनीकी मानक लागू नहीं होंगे, तब तक इस रोजगार क्षमता का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।
तकनीकी मानकों और सुरक्षा की जरूरत
MNRE ने सोलर स्ट्रक्चर्स के लिए कुछ तकनीकी दिशानिर्देश जारी किए हैं, लेकिन ये अनिवार्य नहीं हैं, जिससे कई विक्रेता लागत बचाने के लिए घटिया मटेरियल इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के तौर पर, रीसाइकल्ड स्टील या पतली कोटिंग का इस्तेमाल, जिससे स्ट्रक्चर जल्दी जंग खा जाता है और कमजोर हो जाता है। BIS जैसी अनिवार्य प्रमाणन प्रणाली की कमी से भी बाजार में असमानता बनी रहती है। तटीय राज्यों जैसे ओडिशा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में जहां तेज हवाएं और चक्रवात आते हैं, वहां और भी मजबूत मानकों की आवश्यकता है। प्री-मॉनसून हेल्थ चेक और सही सफाई तकनीक को भी उपभोक्ताओं तक पहुंचाना जरूरी है।
भविष्य की दिशा और जरूरी कदम
भारत का 280 गीगावॉट सोलर लक्ष्य 2030 और 600 गीगावॉट संभावित लक्ष्य 2040 तभी संभव है, जब रेजिडेंशियल सेक्टर मजबूत होगा। ग्रामीण और गैर-महानगर क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर के लिए बड़ी संभावनाएं हैं, क्योंकि वहां जगह ज्यादा और बिजली की मांग अपेक्षाकृत कम है। लेकिन इसके लिए सरकार, उद्योग और उपभोक्ता – तीनों को मिलकर क्वालिटी पर समझौता न करने, सही मेंटेनेंस प्रैक्टिस अपनाने और तकनीकी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। अगर इन मोर्चों पर सही काम हुआ, तो PM Surya Ghar योजना न सिर्फ भारत की बिजली जरूरत पूरी करेगी, बल्कि लाखों नौकरियों के अवसर भी पैदा करेगी। वरना 1.5 मिलियन से 10 मिलियन घरों तक पहुंचना एक कठिन सपना बन सकता है।
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