कोरिया के Korea Institute of Materials Science (KIMS) ने सोलर टेक्नोलॉजी में एक बड़ा ब्रेकथ्रू किया है। रिसर्चर्स ने फ्लेक्सिबल पेरोव्स्काइट सोलर सेल्स का ऐसा वर्जन तैयार किया है जिसे न सिर्फ आम हवा में (ambient air) तैयार किया जा सकता है, बल्कि इसे बार-बार मोड़ने पर भी इसकी परफॉर्मेंस में कोई खास गिरावट नहीं आती है। आमतौर पर पेरोव्स्काइट सोलर सेल्स को बहुत ही संवेदनशील माना जाता है, खासतौर पर नमी के प्रति, लेकिन इस नई टेक्नोलॉजी ने इस बड़ी समस्या का समाधान निकाल लिया है।

बार-बार मोड़ो, फिर भी efficiency बनी रहेगी
KIMS के वैज्ञानिकों ने एक नई निर्माण प्रक्रिया और मटेरियल डेवेलप किया है जिससे सोलर पैनल को 10,000 बार मोड़ने पर भी उसकी 96% efficiency बनी रहती है। इस टेस्ट को एक मैकेनिकल स्ट्रेस टेस्ट के तहत किया गया, जिसमें पैनल को लगातार बेंड किया गया और यह देखा गया कि वह कितनी बार झुकने के बाद भी अच्छा आउटपुट दे सकता है। इतना ही नहीं, 2,800 घंटे की लंबी टेस्टिंग के बाद भी इस सोलर पैनल की 85% से ज्यादा क्षमता बनी रही। इसका मतलब है कि अब सोलर पैनल न केवल लचीले होंगे, बल्कि मजबूत और लंबे समय तक चलने वाले भी होंगे।
नमी और मौसम की मार से भी सुरक्षित
अब तक पेरोव्स्काइट सोलर सेल्स का सबसे बड़ा दुश्मन था – नमी। लेकिन इस नई तकनीक में defect passivation strategy अपनाई गई है, जिसमें मुख्य परत के दोनों ओर 2D परोव्स्काइट की प्रोटेक्टिव लेयर लगाई जाती है। इससे सेल्स को ह्यूमिडिटी से सुरक्षा मिलती है और ये सामान्य वातावरण में भी आसानी से बनाए जा सकते हैं। पहले इन्हें खास तरह के कम आर्द्रता वाले क्लीन रूम में बनाया जाता था, जिससे लागत बहुत ज्यादा आती थी। अब यह तकनीक 50% ह्यूमिडिटी में भी काम करती है और इसकी वजह से मैन्युफैक्चरिंग का खर्च भी बहुत घट गया है।
पहनने वाले डिवाइस और गाड़ियों के लिए होगी क्रांति
यह नई खोज सोलर टेक्नोलॉजी को सिर्फ छत तक सीमित नहीं रहने देगी। अब सोलर पैनल्स इतने लचीले और मजबूत हैं कि उन्हें कपड़ों, बैग्स, स्मार्टवॉच जैसी वियरेबल डिवाइसेज़ और कार की छतों में लगाया जा सकता है। इसकी वजह से पोर्टेबल चार्जिंग, इंडोर लाइटिंग और ट्रैवलिंग के दौरान एनर्जी सपोर्ट जैसी जरूरतों में यह बहुत उपयोगी साबित होगा। KIMS के मुख्य वैज्ञानिक Dr. Dong-chan Lim का कहना है कि इस तकनीक से महंगे उपकरणों की जरूरत नहीं रहेगी और सोलर सेल्स को बड़े पैमाने पर कम लागत में बनाया जा सकेगा।
भविष्य में और भी सस्ते और टिकाऊ सोलर सेल्स की उम्मीद
KIMS की टीम अब इस तकनीक को बड़े स्तर पर लागू करने के लिए काम कर रही है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि यह प्रक्रिया बड़े एरिया में कंटीन्यूस प्रोडक्शन के लिए भी उपयुक्त है। यानी यह सिर्फ एक लैब टेस्ट नहीं, बल्कि एक व्यावसायिक सच्चाई बन सकती है। साथ ही, रिसर्चर्स अब अगली पीढ़ी के ऐसे सोलर मटीरियल्स पर भी काम कर रहे हैं जो भारत जैसे गर्म और आद्र्र जलवायु वाले देशों में भी बेहतर काम कर सकें। इस तकनीक के आने से सोलर एनर्जी की पहुंच ज्यादा लोगों तक हो सकेगी और सस्टेनेबल एनर्जी के सपने को सच्चाई में बदला जा सकेगा।
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