पानी पर तैरते पैनल! बिना जमीन लिए बना देंगे हज़ारों घरों में रोशनी, बचाएँगे करोड़ों लीटर पानी, लेकिन क्या है चुनौतियां जानिए 

Durgesh Paptwan
Durgesh Paptwan | August 15, 2025

भारत में जब भी सोलर पैनल की बात होती है, तो ज्यादातर लोग इन्हें जमीन पर लगे बड़े-बड़े प्लांट के रूप में सोचते हैं। लेकिन अब एक नई तकनीक सामने आई है जो जमीन पर कब्जा किए बिना बिजली पैदा कर रही है – फ़्लोटिंग सोलर पैनल। यह पैनल पानी की सतह पर तैरते हैं और सूरज की रोशनी को बिजली में बदलते हैं। तेलंगाना के पेद्दापल्ली ज़िले में रामागुंडम जलाशय पर लगे 100 मेगावॉट के इस प्लांट को देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा। हज़ारों चमकते पैनल पानी पर फैले हुए हैं, जो दिनभर सूरज की किरणें सोखकर साफ और सस्ती बिजली बना रहे हैं।

floating solar panel future

कैसे बदल रहा है भारत का ऊर्जा भविष्य

फ़्लोटिंग सोलर का सबसे बड़ा फायदा है कि इसे जमीन की ज़रूरत नहीं होती। खेती, घर या इंडस्ट्री के लिए जमीन बचाई जा सकती है। पानी की सतह पर होने की वजह से पैनल ज़्यादा गर्म नहीं होते और लगभग 10% ज्यादा बिजली पैदा करते हैं। इतना ही नहीं, ये पैनल पानी की सतह को ढककर वाष्पीकरण को कम करते हैं, जिससे करोड़ों लीटर पानी बचता है।
उदाहरण के लिए, NTPC का रामागुंडम प्रोजेक्ट हर साल करीब 2 अरब लीटर पानी बचा रहा है, जो 10,000 घरों की पानी की जरूरत के बराबर है। यही तकनीक राजस्थान जैसे सूखे इलाकों में बारिश के पानी के तालाबों पर लगाकर बिजली और पानी – दोनों की बचत की जा सकती है।

उद्योग, गांव और पर्यावरण – सभी को फायदा

फ़्लोटिंग सोलर सिर्फ बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं है। यह उद्योगों और गांवों के लिए भी बड़ी मदद है। छत्तीसगढ़ में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) और NTPC मिलकर मरौदा-1 जलाशय पर 15 मेगावॉट का फ़्लोटिंग सोलर प्लांट लगा रहे हैं, जो स्टील प्लांट को सीधे बिजली देगा और कार्बन उत्सर्जन घटाएगा।
राजस्थान में भी यूडयपुर सीमेंट वर्क्स ने अपनी खदान के पानी से भरे गड्ढे पर 1 मेगावॉट का प्लांट लगाया है, जो हर साल 1.7 मिलियन यूनिट बिजली और 44 लाख लीटर पानी बचा रहा है। खदानों के ऐसे गड्ढों में यह तकनीक पूरे देश के कई इलाकों में लागू की जा सकती है।

चुनौतियां और आगे का रास्ता

हालांकि फ़्लोटिंग सोलर के फायदे कई हैं, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। इसे लगाने की शुरुआती लागत जमीन पर लगे पैनलों से 7-10% ज्यादा होती है क्योंकि फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म महंगे पड़ते हैं। कई जगह मछुआरों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ता है क्योंकि जलाशय का हिस्सा उनके लिए बंद हो जाता है। इसके अलावा, अभी भारत में इस तकनीक के लिए खास मानक और नीतियां तय नहीं हुई हैं, जिससे बड़े पैमाने पर इसे लागू करने में दिक्कत आती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार मजबूत नीतियां बनाए, पायलट प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा दे और स्थानीय जरूरतों के अनुसार डिज़ाइन तैयार करे, तो भारत में 200 गीगावॉट से ज्यादा क्षमता सिर्फ फ़्लोटिंग सोलर से पाई जा सकती है। यह न सिर्फ गांव और शहरों को रोशन करेगा बल्कि जल संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में भी बड़ा योगदान देगा।

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