राजस्थान की मरुभूमि में खेजड़ी पेड़ को “रेगिस्तान का देवता” कहा जाता है। यह पेड़ सिर्फ पर्यावरण के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। खेजड़ी की जड़ें रेत में पानी को पकड़ती हैं, इसकी पत्तियों से पशुओं को चारा मिलता है और इसकी छांव किसान के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं होती। लेकिन अब, राजस्थान के थार रेगिस्तान में सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स के विस्तार के नाम पर यही पेड़ बड़ी संख्या में उजाड़े जा रहे हैं। राज्य सरकार ने 2030 तक 90 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी उत्पादन का टारगेट रखा है, जिसके चलते हजारों बीघा ज़मीन सोलर कंपनियों को दे दी गई है, जिनमें कई ओरन भूमि और खेजड़ी के पेड़ों से भरी हुई हैं।

कंपनियों पर गंभीर आरोप, ग्रामीणों में आक्रोश
स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सोलर कंपनियाँ पेड़ों को पहले जेसीबी मशीन से उखाड़ रही हैं, फिर उन्हें पेट्रोल से जलाकर राख कर रही हैं या रेत में गाड़ दिया जा रहा है। बाड़मेर के शिव उपखंड में चार महीने से गांव वाले धरने पर बैठे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनियां सिर्फ पेड़ नहीं काट रहीं, बल्कि पारंपरिक चरागाह, वर्षा जल संचयन भूमि और खेतों पर भी कब्जा कर रही हैं। बिश्नोई टाइगर फोर्स के अध्यक्ष रामपाल भावड़ ने बताया कि सरकारी अफसरों की मौजूदगी में ये सब हो रहा है और कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। लोगों का गुस्सा तब और बढ़ गया जब सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें पेड़ों को जेसीबी से उखाड़कर ट्रैक्टरों में लादते हुए दिखाया गया है।
विधायक ने खुद खोदा सच, सरकारी तंत्र पर उठे सवाल
शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी खुद धरने पर बैठे ग्रामीणों के समर्थन में सामने आए। उन्होंने धरना स्थल पर रात गुजारी और अगले दिन प्रोजेक्ट साइट पर जाकर खुद रेत खोदकर खेजड़ी के गाड़े गए तनों को निकाला। उनका दावा है कि 1.5 किलोमीटर तक खेजड़ी के तनों को रेत में दफनाया गया और सूखे पेड़ों को पेट्रोल डालकर जलाया गया। उन्होंने पुलिस और प्रशासन को लताड़ते हुए पूछा कि जब रातभर आग जल रही थी तब आपकी गश्त कहां थी? एसडीएम यक्ष चौधरी ने इस मामले को गंभीर मानते हुए जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।
विकास बनाम प्रकृति: कब होगा संतुलन?
राजस्थान सरकार का 90 गीगावॉट एनर्जी टारगेट देश की ऊर्जा जरूरतों के लिए अहम है, लेकिन अगर यह लक्ष्य खेजड़ी जैसे जीवनदायी पेड़ों की बलि लेकर हासिल किया जाएगा, तो यह टिकाऊ विकास नहीं कहलाएगा। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर के पर्यावरण विज्ञान विभाग प्रमुख अनिल छंगाणी के अनुसार, अब तक लगभग 30 लाख पेड़ – जिनमें ज्यादातर खेजड़ी हैं – सोलर प्रोजेक्ट्स के कारण नष्ट हो चुके हैं। गांव वालों का कहना है कि वे विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ये विकास उनकी संस्कृति, परंपरा और पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। खेजड़ी का पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं, रेगिस्तान के जीवन की जड़ है। अगर इसी तरह पेड़ मिटते गए, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए रेगिस्तान सिर्फ रेत का ढेर बनकर रह जाएगा।
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