लद्दाख, जिसे भारत का “सोलर कैपिटल” कहा जाता है, वहां पिछले पांच वर्षों में एक भी यूनिट सोलर एनर्जी का उत्पादन नहीं हो पाया है। यह हैरान करने वाली बात है क्योंकि लद्दाख को देश में सबसे अधिक सोलर पोटेंशियल वाला इलाका माना गया है, जहां 300 से ज्यादा दिन धूप वाले होते हैं और कुल अनुमानित क्षमता 13 गीगावॉट बताई गई है। साल 2018 में इस इलाके को सोलर पावर हब बनाने की घोषणा हुई थी, लेकिन 2025 तक पहुंचते-पहुंचते सारा प्रोजेक्ट कागज़ों में ही सिमटकर रह गया है।

13 गीगावॉट की योजना, लेकिन ज़मीन पर ज़ीरो रिजल्ट
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लद्दाख में प्रस्तावित 13 GW सोलर पावर प्रोजेक्ट को 10,000 मेगावॉट तक संशोधित किया गया, जिसमें लेह और कारगिल में बड़े-बड़े सोलर पार्क बनाए जाने थे। दिसंबर 2018 में Solar Energy Corporation of India (SECI) ने इन प्रोजेक्ट्स के लिए टेंडर जारी किए थे और उन्हें 48 महीनों में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन आज, जुलाई 2025 में भी एक भी यूनिट बिजली वहां से पैदा नहीं हुई है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने इसे देश का प्रमुख रिन्यूएबल एनर्जी सेंटर बनाने की घोषणा की थी।
विफलता की बड़ी वजहें: ब्यूरोक्रेसी, इंफ्रास्ट्रक्चर और राजनीतिक इच्छाशक्ति
लद्दाख की सोलर परियोजना की विफलता के पीछे कई बड़े कारण सामने आए हैं। सबसे पहले, स्थानीय स्तर पर बिजली ट्रांसमिशन नेटवर्क और आवश्यक आधारभूत संरचना का अभाव है। दूसरा, सरकारी प्रक्रिया में धीमापन, मंजूरी मिलने के बाद भी काम शुरू नहीं होना और तीसरा, ऊंचाई और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों ने परियोजनाओं के निर्माण में बाधा डाली है। इसके अलावा, सरकार की प्राथमिकता में भी इस प्रोजेक्ट को उतनी अहमियत नहीं मिली, जितनी दी जानी चाहिए थी। नीतियां तो बनीं लेकिन उनका क्रियान्वयन बेहद कमजोर रहा।
दूसरी योजनाओं का भी लद्दाख में नहीं दिखा असर
PM सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना और PM-कुसुम स्कीम जैसी फ्लैगशिप योजनाएं लद्दाख में लागू होनी थीं, लेकिन यहां भी कार्यान्वयन बेहद धीमा रहा। जहां एक ओर आंध्र प्रदेश में PM-कुसुम योजना के तहत लाखों सोलर पंप्स को मंजूरी दी जा चुकी है, वहीं लद्दाख में ऐसी योजनाएं अभी शुरुआत की कगार पर ही रुकी हुई हैं। इससे साफ है कि सरकार की बड़ी घोषणाएं सिर्फ भाषणों तक सीमित हैं और जमीन पर नतीजे बेहद निराशाजनक हैं।
क्या लद्दाख फिर से बनेगा उम्मीद की किरण?
लद्दाख का मौसम और भौगोलिक स्थिति इसे सोलर पावर के लिए एक स्वर्ग बना सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार को अब ठोस कदम उठाने होंगे। यहां के मेगा सोलर प्लान को सिर्फ रिपोर्ट या घोषणा तक नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि इसे मिशन मोड में लागू करना होगा। यदि ट्रांसमिशन लाइन, कंस्ट्रक्शन और स्थानीय लॉजिस्टिक समस्याओं को जल्द सुलझाया जाए, तो यह क्षेत्र देश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की राह पर ले जा सकता है। वरना यह 13GW का सपना आने वाले वर्षों में भी सिर्फ एक अधूरी कहानी ही बना रहेगा।
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